Not known Factual Statements About वैष्णव धर्म

इस धर्म या सम्प्रदाय के साधू-संन्यासी सिर मुंडाकर चुटिया रखते हैं.

ब्राह्मण धर्म के प्रतिपादक ग्रन्थों (पुराणों, स्मृतियों एवं उपनिषदों) में नारायण की विशेष चर्चा मिलती है। पुराणों एवं पुराणों से पुरानी उपनिषदों का सर्वेक्षण करने पर यह ज्ञात होता है, कि वासुदेव से भी प्राचीनतर सत्ता नारायण की है। ऋग्वेद में नारायण का उल्लेख मिलता है। श्रीमद्भागवत् में नारायण का उल्लेख आधार पर किया गया है, तथा महाभारत में प्रत्येक पर्व के आरम्भ में नर एवं नारायण की स्तुति की गई है। नारायण नाम से ही नारायणोपनिशद की भी रचना प्राप्त होती है। ये सारे तथ्य इस बात के प्रतीक हैं, कि नारायण पर आश्रित वैष्णव सम्प्रदाय बहुत पुराना है।

india previous times india olddays indiaolddays अयोध्या गीतगोविन्द चैतन्य जयदेव तुलसीदास बल्लभ बुद्ध मथुरा रामचरितमानस रामानुज वैष्णव धर्म

वैष्णव धर्म में अवतारवाद का सिद्धांत अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। तदनुसार ईश्वर समय-समय पर अपने भक्तों के उद्धार के लिये पृथ्वी पर अवतरित होता है। गीता में कृष्ण कहते हैं – जब-जब धर्म की हानि तथा अधर्म की वृद्धि होती है।तब-तब में एवतरित होता हूँ।साधुओं की रक्षा तथा दुर्जनों के विनाश एवं धर्म की स्थापना के लिये युग-युग में मैं उत्पन्न होता हूँ। अन्यत्र वर्णित है, कि मेरे में मन को एकाग्र करके निरंतर मेरे में लगे हुए जो भक्त जन अतिशय ऋद्धापूर्वक मुझे भजते हैं, वे योगियों में अत्युत्तम योगी है। जो संपूर्ण कर्मों को मेरे में अर्पण करके मुझे ही अनन्य भाव से भजते हैं, उनको मैं शीघ्र ही मृत्युरूपी संसार सागर से उद्धार कर देता हूँ।

In tantric traditions of Vaishnavism, through the initiation (diksha) supplied by a Expert below whom They are really trained to be aware of Vaishnava procedures, the initiates accept Vishnu as supreme.

ब्रह्म  • ब्रह्माण्ड  • ब्रह्म वैवर्त  • मार्कण्डेय  • भविष्य  • वामन  • विष्णु  • भागवत्  • नारदीय  • गरुड  • पद्म  • वाराह  • वायु  • लिंग  • स्कन्द  • अग्नि  • मत्स्य  • कूर्म  • शिव

वैष्णव भन्नाले विष्णो: अनुयायी भगवान् विष्णु सम्बंधित सम्पूर्ण वस्तुलाई वैष्णव भन्ने गरिन्छ । जस्तै १८ पुराणमा केही वैष्णव छन जस्तै विष्णु, भागवत, नारद, गरुड, पद्म, अग्निलाई वैष्णव पुराण भनिन्छ भने अन्य शैव र केही शाक्त पुराण मानिन्छन् । त्यस्तै संप्रदायलाई वैष्णव सम्प्रदाय, भागवत धर्म, वैष्णव धर्मको प्राचीन नाम भागवत धर्म अथवा पाञ्चरात्र मत हो । यस सम्प्रदायको प्रधान उपास्य भगवान वासुदेव विष्णु हुन, जसलाई छ: गुणहरू ज्ञान, शक्ति, बल, वीर्य, ऐश्वर्य र तेजदेखि सम्पन्न हुनाले भगवान भनिएको छ र उनै भगवानका उपासकलाई वैष्णव भागवत कहिएको छ । यस सम्प्रदायलाई पाञ्चरात्र संज्ञाको सम्बन्धमा अनेकौ मतमतान्तर रहेका छन् ।[१] विष्णुको अवतार मा पर्ने राम कृष्ण इत्यादि सम्बन्धित हरेक वस्तु लाई वैष्णव अन्तर्गत लिने गरिन्छ । भने राम उपासक कृष्ण उपासक खास गरी विष्णु उपासक नै वैष्णव भनेर जानिन्छ्न ।

प्राचीन भारत में वैष्णव धर्म का विकास

बल्लभचार्य ने रामानुज, मध्यवार्य आदि अन्य वैष्णव धर्माचार्यों के मत को स्वीकार न करके अद्वैत मत का समर्थन किया। उन्होंने बतलाया कि यह सृष्टि दो प्रकार की है। जीवात्मक और जड़। हम विश्व में जो कुछ देखते हैं व चैतन्य है अथवा जड़ या इन दोनों का सम्मिश्रण। इन तीनों के द्वारा संसार में अनेक दृश्य दिखलाई देते हैं। पर इसका यह अर्थ नहीं समझना चाहिए कि कोई वस्तु नष्ट हो जाती है। ब्रह्माण्ड में जो परमाणु हैं उनका नाश कभी नहीं होता। जिसे लोग नाश होना समझते हैं वह वास्तव में रूपांतर होता है। बल्लभाचार्य ने अपने सिद्धान्त के समर्थन के लिए वेद और उपनिषद् के प्रमाण दिये और वास्तव में उनका सिद्धान्त बहुत ऊंचे दर्जे का और ज्ञानमय है।

The Vaikhanasas are connected to the Pāñmotor vehicleātra, but regard themselves being a Vedic orthodox sect.[235][251] present day Vaikhanasas reject components with the Pāñcarātra and Sri Vaishnava tradition, although the historic partnership with the orthodox Vaikhanasa in south India is unclear.

पर व्यवहार में उनका सम्प्रदाय बड़ा रसिक और मनोरंजक है। उन्होंने देखा कि धर्म के कठिन नियमों का पालन करते-करते लोग उनसे ऊब गये हैं और धर्म के नाम पर कष्ट उठाना नहीं चाहते। ऐसे संसारी और विषयासक्त लोगों की रुचि धर्म की तरफ लाने के लिए ही सम्भवतः उन्होंने अपने सम्प्रदाय के नियम बहुत सरल और आकर्षक रखे। उन्होंने लोगों को राधाकृष्ण की क्रीड़ा और प्रेमपूर्ण भक्ति का उपदेश दिया। उन्होंने कृष्ण का जो रूप महाभारत तथा भागवत में वर्णन किया गया है उसे प्रधानता न देकर ब्रह्म वैवर्त पुराण में वर्णित कृष्ण के रूप की उपासना बतलाई। उस पुराण में श्रीकृष्ण को पूर्ण ईश्वरत्व मानकर बताया है कि वे ही मायातीत, गुणातीत, निमय और सत्य हैं। वे पूर्ण जीवन सम्पन्न नाना रत्न विभूषित, पीताम्बरधारी और मुरलीधर रूप में सर्वदा गोलोक में निवास करते हैं। इसके अतिरिक्त उस पुराण में श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं का भी अद्भुत और अलौकिक वर्णन किया गया है। बल्लभचार्य जी ने श्रीकृष्ण के इसी रूप की पूजा करने का उपदेश दिया है।

सर्प्रथम छांदोग्य उपनिषद् में कृष्ण का उल्लेख देवकी-पुत्र और अंगिरस के शिष्य के रूप में हुआ है।

बौद्ध धर्म का उद्भव एवं प्रारम्भिक इतिहास

The Vaishnava faculty on the south based mostly its teachings over the Naradiya Pancharatra plus the Bhagavata from the north and laid worry on a life of purity, large morality, worship and devotion to just one God. Even though the monism of Shankara was significantly appreciated because of the intellectual course, the masses came significantly in the fold of Vishnu. Vaishnavism checked the elaborate rituals, ceremonials, more info vratas, fasts, and feasts prescribed through the Smritis and Puranas with the daily life of the Hindu, in addition to the worship of assorted deities such as the Sunshine, the moon, the grahas or planets, enjoined because of the priestly Brahmin course for the sake of emoluments and get.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *